विरासत में मिला है खेल
खास बात यह है कि शिवपाल को भाला फेंक का खेल विरासत में मिला है। उनके पिता रामाश्रय सिंह, चाचा शिवपूजन सिंह और खुद जगमोहन सिंह भी भाला फेंक में जोर लगा चुके हैं। शिवपाल सिंह के चाचा जगमोहन सिंह नौसेना में कार्यरत हैं और भाला फेंक के कोच भी रह चुके हैं। जगमोहन सिंह जब भी छुट्टी पर घर आते थे तो शिवपाल अपने चाचा से गुर लेते थे। शिवपाल ने अपनी इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई गांव में ही की है।
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एशियन गेम्स में जीता था गोल्ड
शिवपाल को आगे लाने के लिए उसके चाचा का अहम रोल रहा है। 18 साल की उम्र में शिवपाल की नौकरी स्पोर्ट्स कोटे से वायुसेना में ले ली गई। फिलहाल शिवपाल की पोस्टिंग हिंडन एयरबेस में है। लेकिन वह इस समय भाला फेंकने की तैयारी के लिए पटियाला के इंडियन कैंप में रह रहे हैं। शिवपाल के छोटे भाई नंद किशोर सिंह भी भाला फेंकने वाले हैं और वर्तमान में स्पोर्ट्स कोटे से नौसेना में सेवारत हैं।
शिवपाल सिंह ने 2019 में दोहा में हुए एशियन गेम्स में 86.50 मीटर फेंककर गोल्ड जीता था। फिर 2020 में चीन के वुहान में हुए वर्ल्ड मिलिट्री गेम्स में 85.47 मीटर भाला फेंक कर गोल्ड मेडल जीता था। इसके अलावा नेपाल में आयोजित प्रतियोगिता में भी सिल्वर मेडल जीता था। साथ ही उन्हें जनवरी 2021 में यूपी सरकार द्वारा लक्ष्मण पुरस्कार से नवाजा गया था।
8 साल की उम्र में शुरू की थी प्रैक्टिस
शिवपाल के पिता रामाश्रय सिंह ने बताया कि शिवपाल को बचपन से ही इस खेल का शौक था। शिवपाल ने 8 साल की उम्र में ही प्रैक्टिस करना शुरू कर दी थी और उनकी प्रतिभा को देखकर उनके चाचा जगमोहन सिंह, जो नौसेना के कर्मचारी थे, उन्हें इंटरमीडिएट की पढ़ाई के बाद अपने साथ ले गए। वहां उन्हें एयरफोर्स में नौकरी मिल गई। रामाश्रय सिंह का कहना है कि खेल कोटे से नौकरी दिलाने की बात आई तो भाला 68 मीटर दूरी तक फेंकना था, पर शिवपाल ने 74 मीटर फेंकते हुए सबको हैरान कर दिया था। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात के दौरान शिवपाल सिंह की तारीफ की थी। अब शिवपाल टोकयो में जा रहे हैं तो पूरे परिवार को उनसे बड़ी उम्मीदे हैं।