काले खिलाड़ियों को रोकने के लिये आईसीसी ने बदला बाउंसर नियम
वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम को 2 बार टी20 विश्व कप जिताने वाले पूर्व कप्तान डैरेन सैमी ने हाल ही में दावा किया है कि आईसीसी ने क्रिकेट में काले लोगों की सफलता को रोकने के लिये ही बाउंसर के नियम में बदलाव किया और नो बॉल का नियम बनाया।
एक इंटरव्यू के दौरान सैमी ने कहा,'जैफ थॉमसन और डेनिस लिली ने बल्लेबाजों को खूब परेशान किया। इसके बाद काली टीम अपनी रफ्तार और बाउंसर के जरिए काफी सफल रही लेकिन उसके बाद बाउंसर का नियम लाया गया, जिसके बाद काली टीम की सफलता सीमित हो गई।'
ऐसा रहा है बाउंसर का इतिहास
उल्लेखनीय है कि साल 1991 तक गेंदबाजी में बाउंसर को फेंकने या उससे जुड़ा कोई नियम क्रिकेट में शामिल नहीं था, हालांकि साल 1991 में पहली बार आईसीसी इससे संबंधित नियम लेकर आई। आईसीसी के अनुसार कोई भी गेंदबाज एक ओवर में एक बाउंसर फेंक सकता था इससे ज्यादा फेंकने पर गेंद को नो बॉल करार कर दी जाती थी।
इसके बाद 1994 में इस नियम को बदलकर एक के बजाय दो कर दिया गया। हालांकि साल 2001 में आईसीसी ने फिर बदलाव किया और इसे वापस एक पर ले आयी और 11 साल बाद 2012 में फिर से 2 बाउंसर प्रति ओवर का नियम कर दिया।
जानें क्यों भड़का है यह मामला
गौरतलब है कि हाल ही में एक एफ्रो अमेरिकी नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की मौत का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था जिसमें एक श्वेत पुलिसकर्मी ने उसकी गर्दन को पैर से इस तरह दबाया कि उसकी मौत हो गई। इस घटना के बाद ही अमेरिका में नस्लवाद के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरु हो गये और खेल जगत के कई दिग्गज खिलाड़ियों ने अपना समर्थन दिया।
इस बीच क्रिस गेल और डैरेन सैमी समेत कई खिलाड़ियों ने क्रिकेट में अपने साथ हुए नस्लवाद की घटना को साझा किया। इसी बीच सोशल मीडिया पर इशांत शर्मा की एक पुरानी पोस्ट वायरल हुई थी जिसमें उन्होंने सैमी को ‘कालू' लिखा था।