क्या बतौर लीडर कोहली में कमी ?
आंकड़ों के लिहाज से देखें तो वर्ल्ड कप के हुए मुकाबलों में टीम इंडिया को अफगनिस्तान के खिलाफ मिली जीत विश्व कप इतिहास में सबसे कम रन से मिली जीत है। बतौर कप्तान विराट भले ही प्रेस कॉन्फ्रेंस में दुनियाभर की बातें कर लें लेकिन एक लीडर के तौर पर वो कई अहम मैचों में फिसड्डी साबित होते हैं। इसकी बानगी अफगान टीम के खिलाफ कई बार देखी गई। विराट,पिच और कंडीशन को पढ़ने में नाकमयाब रहे हैं। सॉउथैंप्टन के पिच में दोहरी उछाल और असमान बाउंस थे जिसे विराट पढ़ने में चूक गए और टॉस जीतकर बल्लेबाजी का फैसला लिया। उनका यह फैसला गलत साबित हुआ और टीम ने हांफते हुए 224 रनों का स्कोर बोर्ड पर लगाया। विराट के नाम भले दुनिया के बड़े-बड़े रिकॉर्ड हों लेकिन मुश्किल घड़ी में वो धोनी की शरण में ही देखे जाते हैं। जब मैच में सिचुएशन विराट के कब्जे से बाहर होता है तब धोनी कमान संभाल लेते हैं।
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क्या राहुल हैं गैर जिम्मेदार ओपनर ?
शिखर धवन के चोटिल होने के बाद लोकेश राहुल बतौर ओपनर टीम में शामिल हुए हैं। स्लगिश पिच पर धवन बेहतर बल्लेबाजी में माहिर हैं। पिछले दो मैचों में उनकी जगह खेल रहे राहुल के दो गैर-जिम्मेदाराना हरकत से यह सवाल उठने लगा है कि क्या वो टीम और वर्ल्ड कप जैसे इवेंट में अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। पाकिस्तान के खिलाफ खेलते हुए वो रन-आउट होने से बाल-बाल बचे, यह ODI में उनकी पहली साझेदारी थी लेकिन बतौर पार्टनर उन्हें थोड़ी और जिम्मेदारी दिखानी होगी। धवन की कमी शायद ही टीम इंडिया में कोई पूरी कर सके क्योंकि वो तेज खेलने में भी माहिर हैं और लेफ्ट-राइट कॉम्बिनेशन की वजह से विपक्षी गेंदबाजों को भी मुश्किल होती है। अफगानिस्तान के खिलाफ अति आत्मविश्वास में आकर उन्होंने रिवर्स स्वीप शार्ट खेला और नबी की सबसे खराब गेंद पर अपना विकेट गंवा बैठे। विश्व कप जैसे इवेंट में ऐसा गैर जिम्मेदार रवैया बड़े मैच में भारी पड़ सकता है।
क्या स्पिन है रोहित की 'बड़ी कमजोरी'
टीम इंडिया के ओपनर रोहित ने इस विश्व कप में दो शतक जड़े हैं और भारत की ओर से सबसे अधिक रन बनाए हैं लेकिन वो जिस तरह बोल्ड हुए इससे भी उनकी एक कमी सामने आ गई। अफगानिस्तान के खिलाफ मैच में रोहित स्पिन गेंदबाजों के खिलाफ एक्स्ट्रा डिफेंसिव दिखे और महज 10 गेंद खेल पाए और बोल्ड हो गए। टीम को बढ़िया शुरूआत नहीं मिलने की वजह से जीत के लिए एक्स्ट्रा मुश्किलों का सामना करना पड़ा। वो मुजीब के कैरम बॉल पर बोल्ड हो गए। कभी स्पिन गेंदबाजी खेलने की माहिर कही जाने वाली भारतीय टीम के लिए ऐसा लगा मानो अफगानिस्तान के स्पिन गेंदबाजों के सामने घुटने टेक दिए हों।
क्या धीमे हो गए हैं धोनी ?
धोनी ने भले ही टीम इंडिया को दो वर्ल्ड कप जिताए हों, वो एक महान कप्तान और खिलाड़ी रहे हैं लेकिन उम्र के जिस पड़ाव में वो पहुंच चुके हैं वहां एक भी मैच में परफॉर्म नहीं करते ही उन पर सवाल उठेंगे। अफगानिस्तान के खिलाफ टीम इंडिया को मिडिल और लोअर मिडिल ऑर्डर परखने का मौका था लेकिन विराट और जाधव को छोड़कर कोई भी बल्लेबाज बहुत सफल नहीं हुआ। यह दुनिया जानती है कि यह धोनी का आखिरी वर्ल्ड कप है लेकिन अफगान जैसी टीम के खिलाफ धोनी की पारी में टीम हित कम और स्वार्थ अधिक दिखा। धोनी की धीमी पारी से एक बात तय है कि वो असमान उछाल वाली पिच पर रन के लिए जूझते दिखे और जब समय निकलता दिखा तो तेज रन बनाने के चक्कर में वो स्टंप आउट हो गए। धोनी 52 गेंदों में 28 रन बना पाए। क्या धोनी के लिए अब समय आ गया है कि वह जल्द अपनी अगली पारी को लेकर कोई फैसला लें। टीम इंडिया मैच भले जीत गई लेकिन अफगान के खिलाफ भारतीय टीम के प्रदर्शन ने वर्ल्ड कप जैसे बड़े इवेंट में टीम इंडिया की कमियों को विपक्षी टीमों के सामने रख दिया है।
क्या जज्बात से फैसले लेते हैं विराट
विराट कोहली भले ही दुनियाभर में खुद और टीम इंडिया के प्रोफेशनल होने का डंका बजाते हों लेकिन वो मैदान में दिमाग से कम और जज्बात से फैसले अधिक लेते देखे जा सकते हैं। हार्दिक उनके लिए बहुत शानदार खिलाड़ी हैं लेकिन बतौर गेंदबाज वो इतने शानदार नहीं हुए हैं कि भारतीय टीम के पांचवें विकल्प बन जाएं। बतौर ऑल राउंडर हार्दिक ने गैर जिम्मेदाराना शार्ट खेलकर विकेट गंवाया और गेंदबाजी में 6 में से एक खराबी गेंद तय है। क्या विजय शंकर इतने फिट नहीं थे कि उन्हें गेंदबाजी दी जा सके? क्या केदार जाधव एक विकल्प नहीं हो सकते थे? हार्दिक को अफगानिस्तान के गेंदबाज हर ओवर में चौके जड़ते रहे लेकिन उन्हें 10 ओवर की गेंदबाजी मिली। उन्हें विकेट जरूर मिला, लेकिन टीम इंडिया हार जाती तो 9 ओवर में 52 रन खर्च करना महंगा पड़ जाता।
धोनी की कप्तानी भरी सलाह ने इस तरह भारत को जिताया हारा हुआ मैच