क्या विराट की जिद टीम को ले डूबी?
विराट और शास्त्री की छवि एक जिद्दी इंसान की है, खेल में यह जायज भी है लेकिन जब यह जिद टीम के प्रदर्शन पर पड़न लगे तो तीखे सवाल पूछे जाने चाहिए। विराट के प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनसे यह नहीं पूछा गया कि आखिर आपने पूरे विश्व कप में नंबर-5 पर बल्लेबाजी करने वाले धोनी को उनकी नैचुरल पोजीशन पर क्यों नहीं भेजा गया। जिस एक फैसले से साल 2011 में माही ने विश्व कप के फाइनल में टीम को चैंपियन बनाया उस 'कप्तान' के साथ सालों से खेलते आ रहे कोहली कप्तानी का 'क' भी नहीं सीख पाए। जिस 45 मिनट के बुरे खेल को विराट ने हार से छिपने की ढाल बनाया उसी 45 मिनट के खेल से न्यूजीलैंड के दो खिलाड़ी ने तीन लगातार हार के बावजूद सेमीफाइनल जीत लिया। अब सवाल यह है कि क्या बतौर कप्तान विराट एक सफल खिलाड़ी हैं। इन्होंने अंडर-19 विश्व कप को छोड़कर आज तक कोई भी ICC चैंपियनशिप नहीं जीता है। जानिए इन्होंने सेमीफाइनल में कौन कौन सी बड़ी गलती की है।
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कितने सफल कप्तान हैं कोहली?
विराट बतौर कप्तान पिच को पढ़ने में नाकमयाब रहे। पहली बार इस्तेमाल की गई पिच तेज गेंदबाजों के लिए मुफीद थी लेकिन कोहली स्विंग गेंदबाजी के साथ गए। जसप्रीत बुमराह ने शुरूआती विकेट तो झटके लेकिन उन्हें भुवी का साथ नहीं मिला। पहले 8 ओवर में भारतीय टीम हावी रही और उसके बाद दो दिन तक चले मैच म टीम इंडिया कभी वापसी करते नहीं दिखी। वर्ल्ड कप के बड़े मैच में कप्तान के पिच पढ़ लेने की काबीलियत से आधा काम आसान हो जाता है जिसे करने में विलियमसन सफल रहे और उन्होंने संजय मांजरेकर को दिए साक्षात्कार में मैच से पहले कह दिया था कि हम पिच और कंडीशन को बेहतर परखने की कोशिश करेंगे और वो यहां कोहली पर भारी पड़ गए।
शमी को मौका न मिलने से हुई बड़ी चूक
विराट बतौर कप्तान टीम में चॉपिंग और चेंजिंग करते रहे हैं लेकिन विश्व कप जैसे इवेंट में यह पहली गलती टीम को भारी पड़ गई। वर्ल्ड कप के 4 मैचों में 14 विकेट लेने वाले मोहम्मद शमी को क्रैक वाली पिच पर टीम में नहीं शामिल किया गया। सौरव गांगुली से लेकर हर्षा भोगले ने टीम मैनेजमेंट के इस अजीबोगरीब फैसले की आलोचना की। न्यूजीलैंड के खिलाफ शमी का शानदार रिकॉर्ड रहा है लेकिन विराट की सोच में वो फिट नहीं बैठे जबकि न्यूजीलैं ने तीन प्रॉपर तेज गेंदबाज को टीम में जगह दी। मैट हेनरी ने मैच जिताऊ गेंदबाजी की और लॉकी फर्गुसन ने भी उनका बखूबी साथ दिया वहीं ट्रेंट बोल्ट ने कोहली और जडेजा का बेशकीमती विकेट लेकर अपनी टीम के लिए इतिहास लिख दिया। भुवनेश्वर ने विकेट तो लिए लेकिन पुछल्ले बल्लेबाजों के और 43 रन खर्च किए। यह विराट की पहली जिद थी जो हार की वजह बनी।
चहल का चयन कितना जायज
जिस पिच पर न्यूजीलैंड के मिचेल सैंटनर ने पहले 6 ओवर में 6 रन दिए उस पिच पर विराट कोहली ने युजवेंद्र चहल को बतौर गेंदबाज चुना था। फ्लाइट और ड्रिफ्ट के साथ गेंदबाजी करने वाले चहल मैच में कभी प्रभाव नहीं दिखे और उन्हें अंतिम ओवर में 16 रन खर्च कर दिए। कुलदीप कलाई के गेंदबाज होने की वजह से खासे प्रभावी हो सकते थे लेकिन विराट की कप्तानी प्रतिभा में यहां भी एक बड़ी चूक हुई और चहल के लुटाए 16 रन ही टीम इंडिया के लिए भारी पड़ गए। यह सिर्फ एक मैच की कहानी नहीं है। सौरव गांगुली ने अपने साक्षात्कार में एक बात कही थी "बैकअप करने से अच्छे खिलाड़ी बनते हैं" लेकिन विराट के लगातार बदलाव से शायद ही किसी खिलाड़ी को यह पता होता है कि उसे अगले मैच में जगह मिलेगी या नहीं।
धोनी के स्लॉट से छेड़छाड़
2011 के वर्ल्ड कप में जिस एक साहसिक फैसले से धोनी ने भारत को विश्व चैंपियन बनाया था ठीक उसी तरह विराट के पास भी एक बड़ा फैसला लेने का मौका था लेकिन वो एक के बाद एक गलती करते रहे। पूरे टूर्नामेंट में नंबर-5 पर खेलने वाले धोनी को उन्होंने 3 मैच में लगभग 30-40 गेंदें खेलने वाले कार्तिक और कुल 8 ODI खेलने वाले ऋषभ पंत के बाद भेजा। इसकी आलोचना दुनियाभर में हो रही है। सौरव गांगुली ने इसे टूर्नामेंट की सबसे बड़ी गलती बताया वहीं भारतीय टीम जिस मिडिल ऑर्डर की कमजोरी पर चार साल काम करते रही वह 4 मिनट के लिए फैसले पर भारी पड़ गया। 4 विकेट गिरने के बाद अगर मैदान पर धोनी होते और उन्होंने जो पारी खेली वह शायद जीत की बुनियाद बनाता लेकिन जब वह मैदान पर गए तब तक शायद देर हो गई थी। किसी विश्व कप में यह शायद उनकी आखिरी पारी थी लेकिन उन्होंने टीम इंडिया को बेइज्जत होने से बचा लिया। वह जीत की दहलीज से भले ही चंद कदम और क्रीज से दूर रह गए लेकिन उन्होंने शायद क्रिकेट के मैदान में सबसे लंबी दूरी रनआउट होने के बाद पवेलियन लौटने में तय की।
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