नई दिल्ली। इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के बीच खेली गई 2 मैचों की टेस्ट सीरीज का आखिरी मैच कीवी टीम के नाम रहा जिसने एजबास्टन में खेले गये इस मैच में 8 विकेट से जीत हासिल की और 21 साल बाद पहली बार सीरीज अपने नाम करने का काम किया। इंग्लैंड की टीम ने इस मैच में पहले बल्लेबाजी करते हुए 303 रनों का स्कोर खड़ा किया, जिसके जवाब में कीवी टीम ने 388 रनों का स्कोर खड़ा किया। 85 रनों की बढ़त का पीछा करने उतरी इंग्लैंड की टीम ने अपनी दूसरी पारी में सिर्फ 122 रन ही बनाये और ऑल आउट हो गये। 37 रन का पीछा करने उतरी कीवी टीम ने इस आसान से लक्ष्य को 2 विकेट खोकर हासिल कर लिया और जीत हासिल की।
हालांकि कीवी टीम की इस जीत में अंपायर के एक फैसले का बड़ा हाथ रहा जिसके चलते कीवी टीम ने पहली पारी में अच्छी खासी बढ़त हासिल कर ली। दरअसल पहली पारी में बल्लेबाजी करने उतरे कीवी टीम के सलामी बल्लेबाज डेवॉन कॉन्वे जब 22 रन के स्कोर पर थे तो जैक क्राउली ने स्लिप में उनका कैच पकड़ा था, हालांकि क्लियर न होने के चलते अंपायर ने तीसरे अंपायर के पास जाने का फैसला किया।
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इस दौरान थर्ड अंपायर माइकल गॉ के पास जाने से पहले अंपायर ने सॉफ्ट सिग्नल के रूप में नॉट आउट करार दिया। वहीं तीसरे अंपायर ने जब रिप्ले देखा तो कन्क्लूसिव एविडेंस न होने के चलते सॉफ्ट सिग्नल के साथ जाने का फैसला किया जिसके चलते कॉन्वे को जीवनदान मिला और उन्होंने 80 रनों की शानदार पारी खेलकर कीवी टीम को मजबूत स्थिति में पहुंचा दिया।
मैच के बाद तेज गेंदबाज स्टुअर्ट ब्रॉड ने इस पूरे मामले पर अपनी नाराजगी जताते हुए कहा कि आईसीसी को सॉफ्ट सिग्नल के नियम को खत्म कर देना चाहिये क्योंकि यह मैच अधिकारियों को मुश्किल स्थिति में पहुंचा देता है फिर फैसले अपेक्षा के अनुरूप नहीं आते हैं।
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स्काई स्पोर्ट्स से बात करते हुए ब्रॉड ने कहा, 'मैदान पर खिलाड़ियों के रिएक्शन से समझा जा सकता है कि फैसला क्या होना चाहिये था। जैक को लगा था कि गेंद उनके हाथ में है और उनके पास खड़े जो रूट और जेम्स ब्रेसी ने भी साफ देखा कि गेंद उनके हाथ में आ गई थी। लेकिन अंपायर 40 गज दूर खड़े हैं और सॉफ्ट सिग्नल देने की मजबूरी में उन्हें एक निर्णय लेना ही पड़ता है भले ही वो उससे इत्तेफाक न रखते हों। अगर आप सॉफ्ट सिग्नल रूल के पॉजिटिव और नेगेटिव प्रभावों पर नजर डालेंगे तो यह एक खराब नियम ही समझ आयेगा। मुझे लगता है कि आईसीसी को इसे बिना किसी देरी के हटा देना चाहिये।'
गौरतलब है कि पिछले काफी समय से खेल जगत में इस नियम को हटाये जाने की मांग की जा रही है। आपको बता दें कि स्टुअर्ट ब्रॉड का मानना है कि आईसीसी को इस नियम को बदलने की ओर ध्यान देना चाहिये।