छोटा फॉर्मेट, गलाकाट प्रतियोगिता-
यहां पर भारत पाकिस्तान और न्यूजीलैंड से हारने के बाद बाकी तीन मैच धाकड़ तरीके से जीतकर भी बाहर हो गया। और साउथ अफ्रीका अपने ग्रुप के 5 मैचों में 4 जीत दर्ज करके भी सेमीफाइनल में नहीं पहुंच पाया। जाहिर है विश्व कप का फॉर्मेट ना केवल गलाकाट है बल्कि यह टीमों को दोबारा सांस लेने का मौका नहीं देता। यहां आप हर टीम का सही से टेस्ट नहीं कर पाते। सभी मुकाबले बहुत तेजी से खेले जाते हैं और टीमें उतनी ही तेजी से अंदर या बाहर होती रहती हैं।
प्रतियोगिता के अंतिम चरण में हम देख पाते हैं कि भारत ने देर से लय हासिल की और वो अपने ग्रुप में सबसे बेहतर नेट रन रेट वाली टीम रही। इसी स्थिति में भारत आगे बढ़ता तो उसको रोकना विपक्षियों के लिए थोड़ा मुश्किल होने जा रहा था। यह सही है कि टीम इंडिया ने अपने तीनों मुकाबले कमजोर टीमों के खिलाफ जीते लेकिन जिस तरीके से जीते वह भी काफी मायने रखता है।
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आईपीएल का फॉर्मेट-
अगर यही प्रतियोगिता ग्रुप में ना बंटी होकर आईपीएल की तरह राउंड रॉबिन में खेली जाती तो कौन जानता है नतीजा कुछ और ही निकलता।
आईपीएल में 8 टीमों के पास एक दूसरे के खिलाफ खेलकर हर बार वापसी करने का चांस होता है। यहां हर टीम बाकी की 7 टीमों से दो बार मैच खेलती है। यानी एक टीम को अगले दौर में प्रवेश करने से पहले 14 मैच खेलने होते हैं जो किसी टीम की काबिलियत का टेस्ट करने के लिए बड़ा सैंपल है।
आईपीएल का फॉर्मेट बेस्ट में से एक, पर लंबा टाइम लेता है-
हालांकि यहां पर आईसीसी की मजबूरी समझ आती है क्योंकि आईपीएल लंबे समय तक चलने वाली प्रतियोगिता है जबकि एक वर्ल्ड कप आम तौर पर एक महीने में खत्म करना पड़ता है। इसके पीछे पूरे साल क्रिकेट की व्यस्तता और बाकी इंवेट्स के लिए विंडो तलाशना है।
लेकिन समस्या यहीं पर खत्म नहीं होती क्योंकि अगर वर्ल्ड कप में केवल एक राउंड मुकाबले खेलकर भी राउंड रोबिन फॉर्मेट खेला जाता है (जैसा की 2019 वर्ल्ड कप में हुआ था) तो सेमीफाइनल का फॉर्मेट बिल्कुल सपाट दिखाई देता है। हम देख चुके हैं कि भारत 2019 के वर्ल्ड कप में राउंड रॉबिन मैचों में शानदार प्रदर्शन करने के बाद सेमीफाइनल में केवल एक खराब मैच खेलकर ट्रॉफी से बाहर हो गया था।
जबकि आईपीएल में सीधा सेमीफाइनल ना कराकर टीम के प्रदर्शन के आधार पर क्वालिफायर्स या एलिमिनेटर मैच कराए जाते हैं। टॉप प्रदर्शन करने वाली टीम पहला मैच हारकर भी दूसरे क्वालिफायर के जरिए फाइनल में प्रवेश कर सकती है। लेकिन वर्ल्ड कप में आपको ऐसा मौका नहीं मिलता।
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टीमों को गिरकर संभलने का एक मौका मिलना चाहिए-
वर्ल्ड कप कायदे में उस प्रतियोगिता में तमाम उतार-चढ़ाव के बीच सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली को फायदा पहुंचना का काम करने वाला होना चाहिए लेकिन छोटे-छोटे ग्रुप में बंटी टीमों में अक्सर नेट रन रेट अहम भूमिका निभाता है। ऐसा नहीं कि आईपीएल में नेट रन रेट अहम नहीं होता लेकिन वहां 14 मैचों का बड़ा सैंपल होता है और अगर किसी टीम का नेट रन रेट खराब है तो चांस हैं कि उस टीम ने पूरी प्रतियोगिता में गिरावट भरा प्रदर्शन अधिक किया होगा। जबकि टी20 वर्ल्ड कप में ग्रुप छोटे रहे, मैच कम खेले गए और नेट रन रेट उनके प्रदर्शन का इस मामले में सही सूचक नहीं था कि वह टीम हमेशा खराब ही रही।
अधिक क्रिकेट होना आईसीसी की मजबूरी बना-
यहां पूरी तरह दोष आईसीसी को भी नहीं दिया जा सकता। सुपर 12 में आईपीएल की तर्ज पर खेलने का मतलब होता प्रतियोगिता का और भी लंबा चलना। हालांकि असली टेस्ट वही होता लेकिन राउंड रॉबिन बेस्ट काम तभी करता है जब टीमों की संख्या कम हो। आईसीसी की मजबूरी समझ में आती है। ये विश्व कप तेज रहा। ग्रुप 2 में इतनी कमजोर टीमों की भरमार होने के बाद भी वहां अफगानिस्तान और न्यूजीलैंड के मुकाबले तक रोमांचकता बनी रही। इसके बावजूद यह फॉर्मेट दक्षिण अफ्रीका जैसी टीम के सीने में कसक छोड़ गया जिसने पांच में चार मैच खेलने के बाद भी बाहर का रास्ता देखा।