कब क्रिकेट में आया DRS या UDRS
क्रिकेट के बदलते नियमों के बीच इस लंब दंड, गोल पिंड धड़-पकड़ प्रतियोगिता को साल 2008 में एक नया शब्द मिला था जिसे UDRS या DRS कहा गया। हिंदी में इस शब्दावली को अंपायर डिसीजन रिव्यू सिस्टम या फिर डिसीजन रिव्यू सिस्टम कहा जाने लगा। हालांकि टीम इंडिया के पूर्व कप्तान धोनी के इस विधा में सबसे अधिक सफल होने के बाद इसे धोनी रिव्यू सिस्टम भी उपनाम दिया गया। टीम इंडिया ने इस तकनीक का शुरुआती दौर में काफी विरोध किया लेकिन जब खुद पर आन पड़ी तो इसे बाद में गोद ले लिया।
क्रिकेट में तकनीक कितनी सही
क्रिकेट में इस तकनीक के आने से पहले तक अंपायर का निर्णय ही सर्वमान्य होता था लेकिन इस नियम के लागू होते ही अंपायर के निर्णय को तकनीक की मदद से चुनौती दी जाने लगी। DRS एक सिक्के के दो पहलू हैं, क्रिकेट का एक वर्ग इसे सही भी मानता है तो एक वर्ग ऐसा भी है जिसे अंपायर का फैसला ही आज भी सर्वोपरि लगता है। लिहाजा क्रिकेट में किसी भी बल्लेबाज को आउट देने के लिए जब कभी खामी आती है तो इस पर बहस होता है कि आखिर तकनीक का इस्तेमाल कितना सही है। हाल के दिनों में टीम इंडिया इस तकनीक के इस्तेमाल में सबसे असफल साबित हुई है। माही डीआरएस का इस्तेमाल करने में सबसे सफल खिलाड़ी और कप्तान रहे हैं और विराट इस तकनीक को सीखने में सबसे फिसड्डी साबित हुए।
कब और कैसे भारत ने अपनाया DRS
साल 2007-08 में टीम इंडिया ऑस्ट्रेलिया दौरे पर थी। सिडनी टेस्ट में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुआ दूसरा टेस्ट मैच कथित गलत अंपायरिंग निर्णय के लिए आज भी याद किया जाता है। हरभजन-साइमंड्स के बीच हुआ 'मंकीगेट कांड' ऑस्ट्रेलियाई अखबारों की सुर्खियां बना। क्रिकेट विश्लेषकों की राय में इस टेस्ट को ब्लैक डे ऑफ टेस्ट क्रिकेट कहा गया। इस मैच में टीम इंडिया के खिलाफ एक-दो नहीं बल्कि कुल 11 गलत निर्णय दिए गए जिसमें कुछ तो ऐसा लगता था जैसे अंपायर ने जान-बूझकर दिए हों। BCCI ने ऑस्ट्रेलियाई टीम के क्रिकेट के गुड स्पिरिट में न खेले जाने का विरोध किया और अंपायर के एकतरफा फैसले देने का भी। इस मैच के बाद ही डेथ अंपायर के नाम से मशहूर स्टीव बकनर को क्रिकेट अंपायरिंग से अलविदा कहना पड़ा और ICC को मजबूरन क्रिकेट में DRS जैसी तकनीक शामिल करने पर मजबूर किया।
सहवाग हुए थे DRS का पहला शिकार
सिडनी टेस्ट (ऑस्ट्रेलियाई दौरे) के बाद साल 2008 (जुलाई) में टीम इंडिया ने श्रीलंका का दौरा किया और ICC ने ट्रायल बेसिस पर इस टेस्ट श्रृंखला में डीआरएस का इस्तेमाल करना उचित समझा। श्रीलंका और भारत ने भी इस तकनीक के इस्तेमाल पर सहमति जताई। यह जानकर शायद आपको आश्चर्य होगा कि कोई और नहीं बल्कि उस समय दुनिया के सबसे विस्फोटक बल्लेबाजों में से एक वीरेंद्र सहवाग इस तकनीक से आउट दिए जाने वाले पहले बल्लेबाज हैं। इस श्रृंखला में श्रीलंका के लिए DRS रिव्यू 11 बार सफल हुए वहीं भारतीय टीम के खाते में इस तकनीक की मदद से महज एक फैसला आया। ICC ने डीआरएस को आधिकारिक तौर पर साल 2009 (24 नवंबर) में न्यूजीलैंड बनाम पाकिस्तान के टेस्ट मैच में लागू किया था। वहीं ODI क्रिकेट में इस तकनीक का पहली बार इस्तेमाल साल 2011 (जनवरी) और टी-20 क्रिकेट में इसे अक्टूबर 2017 से आजमाया गया। इतना ही नहीं आईपीएल के 11वें संस्करण में भी इसके इस्तेमाल की अनुमति दी गई और BCCI ने क्रिकेट के रोमांच को और बढ़ाने के लिए इसे अपना बना लिया।
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DRS लेते वक्त 'T' का क्या है मतलब
DRS शब्द सुनते ही क्रिकेट प्रशंसक के जेहन में महेंद्र सिंह धोनी का नाम सबसे पहले आता है। भारतीय क्रिकेट ही नहीं बल्कि विश्व क्रिकेट में इस तकनीक के इस्तेमाल में उन्होंने सबसे अधिक सफलता हासिल की है। डीआरएस लेते वक्त खिलाड़ी अपने दोनों हाथों से 'T' जैसा सिंबल बनाते हैं। यह T क्रिकेट की भाषा में "Take a chance to see if this decision goes our way" कहा जाता है यानी आजमाकर देखते हैं अगर फैसला हमारे हक में जाता है या नहीं। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो डीआरएस का सबसे अधिक फायदा स्पिन गेंदबाजों को मिला है। DRS के अस्तित्व में आने के बाद स्पिनर के द्वारा एलबीडबल्यू (पगबाधा) आउट होने वाले बल्लेबाजों की संख्या में 17 फीसदी का इजाफा हुआ है। 10 साल पहले स्पिन गेंदबाजों के खिलाफ एक टेस्ट में स्पिन गेंदबाजी के खिलाफ आउट होने वाले बल्लेबाजों का औसत 1.69 था जो पिछले पांच सालों में अब बढ़कर 2.56 हो गया है।
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कैसे लिया जाता है डीआरएस का फैसला
डीआरएस के किसी भी फैसले में जिन तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है उसमें Hawkeye,Hot Spot और Snicko ये तीन चीजें शामिल हैं। Hawkeye जैसा कि नाम से स्पष्ट है बाज की तरह नजर, इस तकनीक का पेटेंट SONY चैनल के पास है। इसका अविष्कार या यूं कहें इसके जनक डॉक्टर पॉल हॉकिंस हैं और सबसे पहले चैनल-4 ने 2001 के एशेज श्रृंखला के दौरान क्रिकेट ब्रॉडकास्टिंग में इसका इस्तेमाल किया था। Snicko और Audio कुछ सालों पहले डीआरएस के फैसले का हिस्सा नहीं थे लेकिन Snicko को बाद में इस तकनीकी प्रक्रिया में शामिल किया गया। स्निक्को मूलतः दिशासूचक माइक्रोफोन होते हैं जिनके जरिए इस बात का पता लगाया जाता है कि EDGE (किनारा) लगा था या नहीं इसलिए conclusive प्रमाण मिलने के बाद ही इसका फैसला लिया जाता है या यूं कहें तो इस तकनीक को भी चलाने में इंसान का दिमाग ही सर्वोपरि साबित होता है। क्रिकेट में बदलते तकनीक और प्रसारण के लिए पहले नई तकनीक वाले कैमरों की संख्या बढ़ाई गई फिर इसके प्रजेंटेशन का तरीका। आम तौर पर आम क्रिकेट मैच के लिए 22-24 कैमरों का इस्तेमाल होता है लेकिन विश्व कप जैसे इवेंट और आईपीएल को कवर करने के लिए 29 से 33 कैमरों का इस्तेमाल किया जाता है। किसी भी विशेष मैच को कवर करने के लिए 7 अल्ट्रा मोशन कैमरे, स्पाइडर कैम, स्टंप कैम, अंपायर कैम और यहां तक कि प्लेयर्स कैम का भी इस्तेमाल होता है। डीआरएस के फैसले देने में सबसे अधिक हाई-एंड और स्पाइडर कैम का इस्तेमाल होता है।
डीआरएस के इस्तेमाल में विराट फेल
टीम इंडिया के नए कप्तान विराट कोहली भले ही दुनिया के बड़े रिकॉर्ड तोड़ उसके आगे अपना नाम लिख रहे हों लेकिन DRS को समझने में और उसका इस्तेमाल करने में वो अभी भी नवजात दिखते हैं। साल 2017 में ऑस्ट्रेलिया के भारत दौरे पर पुणे टेस्ट में डीआरएस का इस्तेमाल करने में विराट ने कई बचकाना फैसले लिए और टीम इंडिया को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। फरवरी 2017 तक विराट ने 55 रेफरल का इस्तेमाल किया जबकि इनमें से सिर्फ 17 परिणाम उनके फेवर में आया। DRS में टीम इंडिया का सफलता प्रतिशत 30.9 है। 55 में से सिर्फ 13 रेफरल बैटिंग के लिए लिए गए थे और 42 रिव्यू फील्डिंग के दौरान लिए गए जिसमें भारत को महज 10 बार सफलता हासिल हुआ। हाल में लोकेश राहुल ने इंग्लैंड में साउथम्पटन टेस्ट, एशिया कप में अफगनिस्तान के खिलाफ और राजकोट टेस्ट में वेस्टइंडीज के खिलाफ तीन डीआरएस के गलत फैसले लिए जिसके बाद क्रिकेट फैंस ने उनकी क्लास लगा दी। वो और विराट मैदान पर DRS ऐसे लेते हैं जैसे उनका जन्मसिद्ध अधिकार हो।
खेल के किस प्रारूप में कितने DRS
क्रिकेट के खेल में तीन प्रारूपों में DRS की संख्या अलग-अलग है। डीआरएस लेने का फैसला किसी भी बल्लेबाज या कप्तान को 15 सेकेंड के भीतर लेना होता है। अगर कोई खिलाड़ी इस नियत समय में यह निर्णय नहीं ले पाया कि वह डीआरएस लेगा या नहीं तो फिर वह अपने बचाव या विपक्षी टीम के खिलाफ डीआरएस नहीं ले पाएगा। टेस्ट क्रिकेट में हर 80 ओवर में दोनों टीमों को 2-2 रिव्यू के मौके मिलते हैं। 28 सितंबर के बाद की नई नियमावली के अनुसार अब टेस्ट क्रिकेट की हर एक पारी में महज दो बार ही टीमें डीआरएस का इस्तेमाल कर पाएंगी। अब टेस्ट क्रिकेट में डीआरएस टॉप-अप की प्रक्रिया को इसी माह से खत्म कर दिया गया है। ODI क्रिकेट में भी हर टीम एक पारी में एक बार डीआरएस का इस्तेमाल कर सकती है। अब इसे टी-20 के अंतरराष्ट्रीय मैचों में भी लिया जा सकता है।
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DRS में माही का मैजिक
टीम इंडिया के माजूदा कप्तान विराट कोहली ने एक साक्षात्कार में कहा था कि DRS के मामले में मैं धोनी पर आँख मूंद कर भरोसा करता हूं और उनके निर्णय पर ही फाइनल कॉल लेता हूं। आंकड़ों के लिहाज से देखें तो माही विश्व क्रिकेट में DRS के इतेमाल में सबसे अधिक सफल खिलाड़ी हैं। विकेट के पीछे और चालाक निगाहों के दम पर माही के कुल 52 फीसदी फैसले DRS में सफल हुए हैं। माही ने 2011 में कुल 14 रिव्यू का इस्तेमाल किया जिसमें 3 सफल और 11 असफल हुए थे और 2 बार अंपायर्स कॉल हुआ था। उस साल उनकी सफलता का प्रतिशत 21 फीसदी था वहीं, साल 2013-15 में उन्होंने 5 बार डीआरएस लिया जिसमें तीन सफल और दो असफल हुए । साल 2017 में उनकी मौजूदगी और सहमति से 9 बार डीआरएस लिया गया जिसमें 7 बार उनका फैसला सही हुआ और 2 बार गलत। उनकी सफलता का प्रतिशत 77.78% रहा। कुल मिलाकर धोनी ने 28 बार रिव्यू लिया है जिसमें 13 बार उन्हें सफलता हाथ लगी है और वो 15 बार असफल हुए हैं। उनकी सफलता का प्रतिशत 46.43 फीसदी है।
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एलबीडबल्यू के फैसले में भी माही अव्वल
अगर बात LBW के फैसले में डीआरएस लेने की बात की जाए तो उन्होंने 15 बार डीआरएस लिया जिसमें 7 बार उन्हें। सफलता मिली और 8 बार वो असफल रहे हैं। उनकी सफलता का प्रतिशत 46.67 है धोनी ने विकेट के पीछे कैच लेते हुए 11 रिव्यू लिए जिसमें वो 6 बार सफल रहे हैं और 5 बार असफल। उन्होंने इस मामले में 54.55 फीसदी की दर से सफलता पाई है। साल 2017 की बात की जाए तो माही ने ODI में 23 बार DRS लेने में भूमिका निभाई है और इसमें 10 बार वो सफल रहे हैं। माही का पिछले एक साल में DRS का सफलता प्रतिशत 43.5 है। उम्मीद है विराट, माही से कप्तानी के साथ इस तकनीक का भी इस्तेमाल जल्द ही सीख जाएंगे।