खर्चे का सोचकर छोड़ दिया था खेलने का सपना
आज से करीब 9 साल पहले साल 2012 में जब विनोद कुमार 32 साल के थे तो हरियाणा के रोहतक में एक मुश्किल भरी जिंदगी बिता रहे थे। वह राजीव गांधी स्पोर्टस कॉम्पलेक्स के पास छोटी सी किराना की दुकान चलाते थे जिनके लिये दिन की सबसे बड़ी चीज वहां पर आने वाले खिलाड़ियों को कड़ी मेहनत करते हुए देखना होता था। विनोद ने शायद देश के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रिप्रजेंट करने का सपना देखा था लेकिन 2002 को उनकी रीढ़ की हड्डी में आयी चोट ने कमर से नीचे के हिस्से को पैरालाइज (लकवा) कर दिया था।
विनोद अपनी इस दुकान से सिर्फ इतना कमा पा रहे थे जिसमें वो अपना और अपनी पत्नी अनीता का जीवनयापन कर सके। इस दौरान विनोद ने पैरा स्पोर्टस के बारे में जानकारी इकट्ठा की, लेकिन जब उन्हें इसमें लगने वाले खर्चे का पता लगा तो उन्होंने अपने सपने का पीछा करने से इंकार दिया।
दीपा मलिक की जीत ने बदली सोच
विनोद के लिये परिस्थितियां साल 2016 में बदली जब भारत की मौजूदा पैरालंपिक समिति की अध्यक्ष दीपा मलिका ने रियो पैरालंपिक खेलों में देश के लिये पदक जीतने वाली पहली महिला बनने का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया। दीपा मलिक के इस कारनामे ने विनोद को अपनी कमियों से पार पाने और डिस्कस थ्रो में अपने सपने का पीछा करने के लिये प्रेरित किया।
विनोद ने एक इंटरव्यू में इसको लेकर बात की थी और कहा था कि दीपा मलिक के सिल्वर मेडल ने मुझे विश्वास दिलाया कि मैं भी देश का सम्मान बढ़ाने में अपना योगदान दे सकता हूं। तीरंदाजी कोच संजय सुहाग ने उन्हें अपने सपने का पीछा करने के प्रोत्साहित किया और एथलेटिक्स कोच अमरजीत सिंह से मिलाया, जिसके बाद पैरालंपिक्स में देश के लिये ब्रॉन्ज जीतने का सफर शुरू हुआ।
ऐसे शुरू हुआ विनोद का पदक जीतने का सफर
विनोद ने ट्रेनिंग शुरू की और जयपुर में अगले साल होने वाली नेशनल चैम्पियनशिप में भाग लिया और ब्रॉन्ज मेडल भी जीता। विनोद ने साल 2018 में एक बार फिर से इस कारनामे को दोहराया, जिसके बाद कोच सत्यनारायण उनको लेकर 2019 में पेरिस पहुंचे जहां पर अंतर्राष्ट्रीय पैरालंपिक कमिटी ने उन्हें अगले 2 सालों के लिये T/F52 वर्ग में शामिल किया।
इसके चलते विनोद 2019 में दुबई में खेले गये विश्व पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप का हिस्सा बनें और चौथे पायदान पर रहते हुए टोक्यो पैरालंपिक्स का टिकट कटाया। आईपीसी ने विनोद को सिर्फ दो सालों के लिये पैरा एथलीट वर्ग में जगह दी थी जिसके चलते जब साल 2020 में कोरोना वायरस के चलते पैरालंपिक्स स्थगित हो गया तो विनोद को दोबारा आईपीएस के सामने जाकर फिर से पंजीकरण कराना पड़ा।
पत्नी ने हर कदम पर दिया विनोद का साथ
गौरतलब है कि विनोद कुमार सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवान रह चुके हैं लेकिन एक दुर्घटना के चलते उनकी रीढ़ की हड्डी में चोट आयी और वो पैरालाइज हो गये। इसके बाद का सफर उनके लिये आसान नहीं रहा था, अगले 10 सालों तक विनोद कुमार के लिये बिस्तर से उठ पाना भी मुश्किल था और अपने ज्यादातर कामों के लिये दूसरों पर निर्भर होते थे। लंबे इलाज के चलते आर्थिक स्थिति भी कुछ ठीक नहीं रही थी।
साल 2012 में विनोद की शादी हुई और अब वो दो बेटियों के बाप हैं। परिवार की बढ़ती जिम्मेदारियों के साथ खर्चे बढ़ रहे थे लेकिन विनोद की आमदनी उस हिसाब से नहीं बढ़ रही थी, इसके चलते उन पर काफी कर्जा हो गया। पेरिस ट्रिप के लिये उन्होंने अपनी बहन से 3.5 लाख रुपये का कर्ज लिया जिसे वो अभी तक चुका नहीं सके हैं। अक्टूबर 2020 में पीसीआई समेत भारतीय खेल प्राधिकरण ने बेंगलुरू के सेंटर में ट्रेनिंग कैंप आयोजित किया, जिसमें विनोद ने पैरालंपिक खेलों के लिये जाने से पहले तक ट्रेनिंग की और इस दौरान उनकी पत्नी ने दुकान संभालते हुए रोजमर्रा के सभी काम किये। विनोद के लिये मुश्किलें तब और भी बढ़ गई जब वो दो बार कोरोना वायरस की चपेट में आये और दोनों बार उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। हालांकि अंत में अब जब उन्होंने अपना सपना पूरा कर लिया है तो उम्मीद है कि उनकी मुश्किलों भरे सफर का अंत भी हो जायेगा।