मन में आता था बालकनी से कूदने का ख्याल
अपने डिप्रेशन के दिनों के बारे में बात करते हुए रॉबिन उथप्पा ने बताया कि उस दौरान कई बार उनके मन में ख्याल आया कि वह बालकनी से छलांग मार दें लेकिन तब शायद क्रिकेट ही एक ऐसी चीज थी जिसने उन्हें रोके रखा।
उन्होंने कहा,'मुझे याद है 2009 से 2011 के बीच यह लगातार हो रहा था। मुझे रोज इसका सामना करना पड़ता था। मैं उस समय क्रिकेट के बारे में सोच भी नहीं रहा था। मैं सोचता था कि इस दिन कैसे रहूंगा और अगला दिन कैसा होगा। मेरे जीवन में क्या हो रहा है और मैं किस दिशा में आगे जा रहा हूं। क्रिकेट ने इन बातों को मेरे जेहन से निकाला। मैच से इतर दिनों या ऑफ सीजन में बड़ी दिक्कत होती थी। मैं उन दिनों इधर-उधर बैठकर यही सोचता रहता था कि मैं दौड़कर जाऊं और बालकनी से कूद जाऊं, लेकिन किसी चीज ने मुझे रोके रखा।'
डायरी लिखने से मिली मदद, आया बदलाव
रॉबिन उथप्पा ने आगे बताया कि इसके बाद उन्होंने डिप्रेशन से निपटने के लिये डायरी लिखना शुरू किया जिसके चलते उनके जीवन में काफी बदलाव आया।
उन्होंने कहा, 'मैंने एक इंसान के तौर पर खुद को समझने की प्रक्रिया शुरू की। इसके बाद बाहरी मदद ली ताकि अपने जीवन में बदलाव ला सकूं।'
करियर में काफी बुरे दौर से गुजर चुके हैं उथप्पा
गौरतलब है कि इसके बाद रॉबिन उथप्पा को ऑस्ट्रेलिया में भारत ए की कप्तानी का मौका मिला हालांकि इसके बावजूद भी उनका चयन भारतीय टीम में नहीं हो सका। इसके बाद 2014-15 रणजी सीजन में उथप्पा ने सर्वाधिक रन बनाए।
उन्होंने कहा, 'पता नहीं क्यों, मैं कितनी भी मेहनत कर रहा था लेकिन रन नहीं बन रहे थे। मैं यह मानने को तैयार नहीं था कि मेरे साथ कोई समस्या है। हम कई बार स्वीकार नहीं करना चाहते कि कोई मानसिक परेशानी है।'
आपको बता दें कि रॉबिन उथप्पा ने अभी तक अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा नहीं कहा है और अभी भी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी की आस रखते हैं। इस बीच उन्होंने कहा कि जीवन में बुरे दौर का जिस तरह उन्होंने सामना किया, उन्हें कोई खेद नहीं है।