कभी सड़कों पर बेचते थे गोल गप्पेः
यशस्वी उत्तर प्रदेश के भदोही के हैं और शुरुआती दिनों में उन्हें अपना पेट पालने के लिए गोल गप्पे बेचने पड़े और रातें गुजारने के लिए कभी टेंट तो कभी फुटपाथों का सहारा लेना पड़ा, लेकिन आज क्रिकेट की दुनिया में वो एक नई पहचान हैं। जब अपने सपनों को साकार करने के लिए यशस्वी ने यूपी से मुंबई की तरफ रुख किया तो उऩ्हें डेयरी में नौकरी करनी पड़ी और गोलगप्पे तक बेचने पड़े लेकिन इस युवा ने कभी अपनी मजबूरी से सपनों का समझौता नहीं किया और आज युवा खिलाड़ियों में अपना एक अलग औरा बना लिया है। बता दें कि इस खिलाड़ी के शानदार प्रदरशन के दम पर ही भारत ने श्रीलंका को 144 रनों से मात देकर छठी बार ट्रॉफी अपने नाम की।
सड़कों पर गुजारी रात, पर नहीं किया हालात से समझौताः
यशस्वी जयसवाल मुंबई के मुस्लिम यूनाइटेड क्लब के गार्ड के साथ तीन साल तक टेंट में रहे। यूं तो मुंबई में यशस्वी के चाचा रहते थे। लेकिन उनका अपना परिवार था और किराए का घर इतना बड़ा नहीं था कि वह यशस्वी को अपने साथ रख सकें। इसलिए यशस्वी को 11 साल की उम्र में ही अगले तीन सालों तक मुस्लिम यूनाइटेड क्लब के गार्ड के साथ टेंट में रहना पड़ा। उन्होंने अपने इस संघर्ष से भरे जीवन के बारे में मां-बाप को भनक तक नहीं लगने दी। क्योंकि अगर उनके परिवार को पता चलता तो उन्हें वापस भदोही बुला लिया जाता और उनके क्रिकेट करियर का वहीं अंत हो जाता। इस खिलाड़ी ने सबकुछ सहा और आज इस मुकाम को हासिल किया।
सचिन ने गिफ्ट किया था बल्लाः
बता दें कि यशस्वी के इस कमाल के पीछे उनके कोच ज्वाला सिंह का बड़ा योगदान है जिनके परिश्रम और विश्वास ने यशस्वी को ये मुकाम दिलाया। दरअसल जब यशस्वी का चयन श्रीलंका दौरे पर जाने वाली भारत की अंडर-19 टीम में हुआ था तब उस टीम में महान सचिन के बेटे अर्जुन भी शामिल थे । ऐसे में सचिन को जब यह बात पता चली तो सचिन ने अर्जुन के माध्यम से उन्हें अपने घर बुलाया था, वहीं उन्होंने करीब एक घंटे तक उन्हे टिप्स दिए थे, और अपना ऑटोग्राफ वाला बल्ला भी गिफ्ट किया था।