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रियो ओलम्पिक्स 2016 : इस बार भारत के दोगुने पदक जीतने की उम्मीद में अहम हो सकते हैं ये सरकारी कदम

नई दिल्ली। आबादी के लिहाज़ से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश भारत ओलंपिक पदकों के मामले में फिसड्डी रहा है और यह किसी से छिपा नहीं है। बीते 3 दशक यानी 30 वर्षों का इतिहास उठाकर देखें तो पाएंगे कि भारत की झोली में एकमात्र गोल्ड मेडल शूटिंग से आया है और वह भी दिलाया है अभिनव बिंद्रा ने। उन्होंने 2008 में 10 मीटर राइफल शूटिंग में यह पदक जीता था। रियो ओलम्पिक्स 2016 : जानिए 8 ऐसी रोचक बातें जिनसे आप अबतक हैं अनजान

2008 बीज़िंग ओलम्पिक्स गेम्स में भारत की झोली में कुल 3 मेडल आए थे जिसे कि उस वक्त बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा था। ऐसा इसलिए क्योंकि उससे पहले भारत को ओलंपिक में एक्का-दुक्का मेडल ही मिला करते थे। चार साल बाद 2012 में लंदन ओलम्पिक्स में तस्वीर बदली और भारत को कुल 6 मेडल्स मिले।

अब जबकि 2016 रियो ओलंपिक शुरू होने में एक दिन ही शेष है, ऐस में भारत की इस बार मेडल उम्मीदों की चर्चाएं होना लाज़िमी है। खुशी की बात यह है ​कि भारत इस बार अबतक के सबसे बड़े खिलाड़ी दल के साथ रियो ओलंपिक में प्रतिभाग कर रहा है। कुल 120 एथलीटों ने इसबार ओलंपिक के लिए क्वॅलीफाई किया। इस तथ्य के साथ ही जो एक अन्य तथ्य ज़्यादा पदकों की उम्मीदों को मजबूती देता है, वह है सरकार और स्पोर्ट अथॅरिटी आॅफ इंडिया यानी साई की तरफ से खेलहित में उठाए गए कुछ कदम।

हम आपको ऐसे ही कुछ कारणों के बारे में बता रहे हैं जो नीतिगत रूप से भारतीय दल को ओलंपिक में ज्यादा पदक लाने के लिए प्रेरित करते हैं। बीते 4 वर्षों के अंतराल में सरकार ने खेल स्थिति को सुधारने के लिए क्या कदम उठाए, जानिए इन पॉइंट्स में :

1. राष्ट्रीय खेल विकास फंड के अंतर्गत खेल एवं युवा कल्याण मंत्रालय ने टार्गेट ओलंपिक पोडियम यानी टीओपी स्कीम शुरू की। इसके तहत रियो ओलम्पिक में प्रतिभाग करने वाले भारतीय खिला​ड़ियों को व्यक्तिगत रूप से ट्रेनिंग मिली। इस मकसद को अंजाम देने के लिए सरकार ने कुल 45 करोड़ का बजट पास किया था। इसमें कुल 100 एथलीट्स चुने गए थे। इस लिहाज़ से देखा जाए तो प्रत्येक खिलाड़ी पर औसतन 30 से 150 लाख रुपए ट्रेनिंग में खर्च किए गए। रियो ओलम्पिक्स : इन 5 भारतीय खिलाड़ियों से पदक जीतने की है सबसे ज्यादा उम्मीद

2. ट्रेनिंग एवं प्रतिस्पर्धाओं के सालाना कैलेंडर के हिसाब से बीते 2 सालों में एथलीटों को खुले रूप से वित्तीय मदद मुहैया कराई गई है। देश-विदेश में ट्रेनिंग या कॉम्पटीशन में प्रतिभाग करने के लिए कुल 180 करोड़ रुपए खर्च किए गए।

3. 2012 ओलंपिक्स से लेकर अबतक साई सेंटर्स को मॉडर्न और लेटेस्ट फैसेलिटीज़ से युक्त किया गया है। इनमें एंटी ग्रैवटी ट्रेडमिल्स, हायपॉक्सिक चैम्बर्स और न्यूरोट्रैकर्स ​शामिल हैं। इसके अलावा मॉडर्न स्पोर्ट साइंस तकनीक भी कई सेंटर्स को उपलब्ध कराई गई है, जिसका खिलाड़ियों ने भरपूर इस्तेमाल किया।

4. बात अगर तकनीकी अधिकारियों जैसे पर्सनल कोच, फिज़ियो, ट्रेनर्स आदि की करें तो रियो ओलंपिक की तैयारियों के लिए ज़रूरी संख्याबल को मुहैया कराया गया। इस बीच मैनेजिंग स्टाफ को कम किया गया।

5. 40 से अधिक विदेशी कोच और एक्सपर्ट की मदद से भारतीय एथलीटों को ट्रेनिंग दिलाई गई। रियो ओलम्पिक 2016 के उद्घाटन समारोह में शामिल होंगे संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून

6. इस दौरान प्रति खिलाड़ी खाने की धनराशि में भी इजाफा किया गया। इसे 450 रुपए प्रति व्यक्ति से 650 रुपए प्रति व्यक्ति कर दिया गया। जबकि सप्लीमेंट धनराशि को 300 रुपए से 700 रुपए प्रति व्यक्ति कर दिया गया।

7. पिछले ओलंपिक्स तक खिलाड़ियों को उद्घाटन दिवस से 2 या 3 दिन पहले ही भेजा जाता था लेकिन इस बार उन्हें लगभग 15 दिन पहले ही रियो डी जेनेरियो भेजा गया। ऐसा इसलिए किया गया ताकि वे वहां पहुंचकर स्थानीय वातावरण के हिसाब से खुद को ढाल सकें।

Story first published: Tuesday, November 14, 2017, 13:03 [IST]
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