स्मॉल टाउन ब्वॉय की कहानी
करियर के शुरुआती दौर में ड्रेसिंग रूम में किसी विपक्षी टीम के खिलाड़ी ने इनसे एक बार पूछा था रांची भारत में कहां है। क्या आप इसे नक्शे पर दिखा सकते हो तो धोनी ने जवाब दिया था आप जल्द ही ये बात जाना जाओगे। माही को तब क्रिकेट कमेंटेटर्स भी स्मॉल टाउन बॉय कह कर संबोधित करते थे। कुछ क्रिकेट विश्लेषक तो उन्हें 2011 विश्व कप जीत से पहले तक किसी बड़ी जीत या उपलब्धि पर ऐसे शब्दों से संबोधित करते थे लेकिन इस शख्स ने क्रिकेट जगत में उपलब्धि की नई परिभाषा गढ़ दी। आखिर बीते 9 महीने में माही के खेल में ऐसा क्या बदलाव हुआ कि अब वो टी-20 में ड्रेसिंग रूम का हिस्सा नहीं होंगे। जानिए उनके टीम में नहीं चुने जाने की असल वजह क्या है।
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कैसे युवा धोनी बने HERO
भारत एक ऐसा देश है जहां क्रिकेट धर्म और क्रिकेट खिलाड़ी को 'भगवान' की तरह पूजा जाने लगता है। जीतने पर क्रिकेटर्स को ताली और हारने पर गाली दोनों मिलती है। इस देश में क्रिकेट जूनून और इमोशन का ऐसा कॉकटेल है जिसमें किसी भी दिग्गज खिलाड़ी के खिलाफ लिए एक फैसले पर क्रिकेट फैंस चयनकर्ताओं की औकात दिखाने लगते हैं। लेकिन क्या किसी भी विकल्प की तलाश एक क्रिकेटिंग लीजेंड का अपमान तो नहीं है। धोनी के लिए भी विकल्प की तलाश में कोई बुराई नहीं है। जब साल 2007 में युवा धोनी को कप्तानी दी गई थी तब भी क्रिकेट के फैब-4 (गांगुली,सचिन, द्रविड़,लक्ष्मण) कहे जाने दिग्गज टीम इंडिया में मौजूद थे और सचिन ने ही इनका नाम प्रस्तावित किया था। धोनी ने युवा भारतीय टीम के साथ भारत को टी-20 का विश्व कप चैंपियन बनाया और क्रिकेट जगत के HERO बन गए। आज अगर उनकी जगह किसी विकल्प की तलाश है तो इतनी हाय-तौबा क्यों?
लीजेंड एक ही बार पैदा होते हैं
क्रिकेट के दिग्गज और विश्लेषक भी इस बात को जानते हैं कि धोनी के दिमाग में क्या चल रहा होता है यह आज तक दुनिया में कोई परख नहीं पाया। वह जोगिंदर शर्मा से टी-20 विश्व कप (2007) के फाइनल ओवर में गेंदबाजी करवाना हो या टेस्ट क्रिकेट से लिया अचानक संन्यास। धोनी ने 2019 विश्व कप को ध्यान में रखते हुए लंबे फॉर्मेट से संन्यास लिया और ध्यान ODI और टी-20 पर लगाया। लेकिन हाल के दिनों में माही के बल्ले से वो मैजिक नहीं दिखा जिसकी वजह से वो महान बने हैं। मेरी राय में किसी भी दिग्गज/लीजेंड का कोई विकल्प नहीं होता है। वह एक है और एक ही रहता है चाहे सचिन की तुलना विराट से हो पुजारा की तुलना द्रविड़ से हो या फिर धवन की तुलना सहवाग से हो, क्रिकेट जगत में न कभी कोई दूसरा सचिन होगा, न द्रविड़ और न ही कोई विराट या फिर धोनी चाहे कितने ऋषभ पंत या दिनेश कार्तिक आ जाएं।
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पहली बार ड्रॉप हुए माही
साल 2006 से अब तक टीम इंडिया ने कुल 104 टी-20 मैच खेले हैं, धोनी इनमें से 93 टी-20 का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने इस दौरान 127 के स्ट्राइक रेट से कुल 1487 रन बनाए, 54 कैच लिए और 33 खिलाड़ियों को स्टंप आउट किया। 11 में से अपनी टीम को तीन बार आईपीएल का खिताब जिताने वाले माही राइजिंग पुणे सुपर जाइंट के लिए खेलते हुए विफल रहे। साल 2018 में येलो ब्रिगेड (CSK) के लिए 150 के स्ट्राइक रेट से 455 रन बनाने वाले माही ने इस साल 'उम्रदराज' खिलाड़ियों के दम पर शानदार कमबैक कर आईपीएल का खिताब जीता। वो हाल में ही इंग्लैंड दौरे पर टी-20 की टीम में शामिल थे जहां उन्होंने चीते की चाल से खिलाड़ियों को रन-आउट और स्टंप तो किया लेकिन तीन में से सिर्फ एक मैच में बल्लेबाजी करने का मौका मिला।
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कैसे और कब धीमे हुए धोनी
धोनी ने कुछ महीनों पहले हार्दिक के साथ 200 मीटर की दौड़ में जीत हासिल की। वो अब भी विकटों के बीच सबसे तेज दौड़ते हैं और रन चुराते हैं, वो अब भी सबसे तेज मिनी सेकेंड में खिलाड़ियों को स्टंप करते हैं, डाइवे मारकर कैच लेते हैं लेकिन पिछले दो सालों से उनकी बल्लेबाजी धीमी होती चली गई। आंकड़ों की कहानी में जानिए उस पारी को जो धोनी की क्षमता पर पहला सवालिया निशान बना और उसके बाद इनकी बल्लेबाजी में मिडास टच खोता चला गया। डेथ ओवर के स्पेशलिस्ट कहे जाने वाले धोनी की सबसे धीमी पारी का आगाज चार साल पहले साल-2014 में हुई थी। ढाका के मीरपुर स्टेडियम में उस दिन दो खिलाड़ियों ने अपने जीवन की सबसे धीमी पारी खेली थी,पहले थे युवराज सिंह जिन्होंने 21 गेंदों में 11 रनों की पारी और माही ने 7 गेंदों में 4 रनों की पारी खेली थी। अंतिम ओवर के धुरंधर कहे जाने वाले धोनी पहली बार बेबस नजर आ रहे थे और भारतीय टीम को श्रीलंका के हाथों टी-20 वर्ल्ड कप के फाइनल मुकाबले में हार मिली थी।
धोनी के करियर की सबसे धीमी पारी
टेस्ट से संन्यास देने के बाद धोनी ने सिर्फ ODI और टी-20 खेलने के लिए खुद को मौजूद बताया लेकिन उनके बल्ले से निकलने वाले नेचुरल हिट उनकी क्रिकेट बुक से भी निकलते चले गए। अप्रैल 2004 में 123 गेंदों में पाकिस्तान के खिलाफ 148 और अक्टूबर 2005 में श्रीलंका के खिलाफ 145 गेंदों में नाबाद 183 रनों की पारी खेल चुके धोनी में 13 साल बाद भी लोग वही जलवा, जोश और जुनून खोज रहे थे लेकिन माही ने दुनिया के सभी बड़े खिताबों को अपने नाम से जोड़ने के बाद खेल के अंदाज में बदलाव किया और अंग्रेजी के एक कहावत 'everything comes with an age' की तर्ज पर माही धीमे होते गए। उन्होंने जुलाई 2017 में अपने क्रिकेटिंग करियर की सबसे धीमी पारी वेस्टइंडीज में खेली थी।
जब माही को किया गया हूट
इसे संयोग कहें या कुछ और लेकिन जिस महीने में धोनी अपना जन्मदिन मनाते हैं उसी महीने उन्होंने भारतीय क्रिकेट इतिहास में पिछले 17 सालों की सबसे धीमी पारी खेली। विंडीज के खिलाफ एंटीगुआ एकदिवसीय मुकाबले में उन्हें अपना पचासा पूरा करने में 108 गेंदों का सामना करना पड़ा। यह पिछले 15 सालों में किसी भी भारतीय बल्लेबाज का सबसे धीमा बनाया पचासा था. टीम इंडिया इस मुकाबले में 190 रनों का लक्ष्य चेज नहीं कर पाई और टीम को हार मिली। इस मैच के 21 से 40 ओवर के बीच भारतीय टीम ने महज 54 रन बनाए और इस दौरान सिर्फ एक चौका लगा। सबसे ज्यादा 5 रन 39वें ओवर में आया था। धोनी ने इस दौरान 65 गेंदों में 24 रन बनाए थे और मैदान पर क्रिकेट प्रशंसक उनकी बेतुकी पारी के लिए उन्हें 'हूट' कर रहे थे. तब भी वो क्या साबित करना चाह रहे थे ये आज तक किसी क्रिकेट विश्लेषक को नहीं पता चला है। 2001 के बाद भारत ने इन ओवरों के दौरान महज तीन बार ही इससे कम रन बनाए थे। इस दौरान धोनी का औसत 36.92 का रहा।
माही और प्रसाद का कोल्ड वॉर
धोनी को टी-20 में जगह न मिलने के कारण क्रिकेट प्रशंसक भी दो धरे में बंटा है। थलाइवा (माही) के फैन उन्हें टीम में देखना चाहता है लेकिन दबी जबान में क्रिकेट विश्लेषक अक्सर माही को घरेलू क्रिकेट खेल कर अपना फॉर्म सुधारने की सलाह देते दिख जाते हैं। सवाल यह है कि क्या माही बढ़ती उम्र और उपलब्धियों के साथ अड़ियल होते जा रहे हैं। इसका फैसला आप तय करें। लेकिन दिसंबर-2017 में मुख्य चयनकर्ता के लिए ODI विकेटकीपिंग में 'पहली पसंद' बताए जाने वाले माही कैसे टी-20 से बाहर हो गए सोशल मीडिया में इसकी एक और कहानी लोगों के जुबान पर है। माही और टीम इंडिया के मुख्य चयनकर्ता एम.एस के प्रसाद के बीच कथित 'कोल्ड वॉर' . जानिये कब और कैसे इन दोनों के बीच कथित सास-बहू की तरह झगड़े शुरू हुए।
प्रसाद के लिए नंबर-1 थे धोनी
दिसंबर-जनवरी 2017-18 के बीच ऐसी चर्चाएं जोरों पर थी कि एम.एस.के प्रसाद ने माही को कप्तानी छोड़ने का दबाव बनाया। इस मीडिया रिपोर्ट को प्रसाद में गलत बताया और कहा कि माही का कप्तानी छोड़ने का फैसला निजी था और हम इसका सम्मान करते हैं। 24 दिसंबर 2017 को टीम के चयन के बाद ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में धोनी के खराब फॉर्म से गुजरने के बाद भी दुनिया का बेस्ट विकेट कीपर बताया था, उन्होंने कहा था " धोनी विश्व कप 2019 तक टीम में एक विकेटकीपर बल्लेबाज की हैसियत से खेलेंगे, हमने कई युवा खिलाड़ियों को विकल्प के तौर पर आजमाकर देखा लेकिन वो उनके करीब भी नहीं हैं इसलिए टीम मैनेजमेंट ने फैसला लिया है कि वो टीम इंडिया के लिए विश्व कप खेलेंगे' आपको बता दें इससे पहले उन्होंने धोनी पर एक और बयान दिया था जिसमें उन्होंने माही के चयन को ऑटोमेटिक सेलेक्शन नहीं बताया था जिसके बाद सोशल मीडिया पर उनकी खूब आलोचना हुई थी। प्रसाद ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में माही को दुनिया का नंबर-1 कीपर बताया था। तो आखिर इन दोनों के रिश्ते के बीच खटास कहां आई।
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कप्तानी के बोझ में बूढ़े हो गए माही
धोनी के बारे में जब भी मुख्य चयनकर्ता से सवाल पूछा गया उन्होंने इन्हें ODI के लिए बेस्ट बताया। लेकिन अंग्रेजी में एक कहावत है 'Captaincy brings the grey hair on chin'. धोनी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। माही तीन प्रारूपों में खेलते हुए टीम इंडिया को चैंपियन बनाते रहे लेकिन उनकी दाढ़ी पक गई और वो बूढ़े दिखने लगे। हाल के तीन सालों में एक नहीं कई ऐसे मौके आए जब माही अपनी टीम को सीमा रेखा के पार नहीं पहुंचा पाए। यही वजह थी कि धोनी के फॉर्म पर सवाल उठने लगे। हाल में माही को फॉर्म सुधारने के लिए क्रिकेट दिग्गज और चयनकर्ताओं ने डोमेस्टिक क्रिकेट का रूख करने की सलाह दी। विजय हजारे ट्रॉफी में शानदार प्रदर्शन करने वाली टीम से उन्होंने खेलने से मना कर दिया और टीम का बैलेंस न बिगाड़ने की बात कह चयनकर्ताओं को सीधा संदेश दिया कि शायद वो आर या पार के मूड में हैं। क्या चयनकर्ताओं ने उन्हें कथित तौर पर यह संदेश दे दिया है कि आप अपने लीजेंड होने के दम पर टीम में नहीं बने रह सकते हैं और टीम को विकल्प की तलाश है।
काश धोनी ले लेते बड़ा फैसला
भारतीय क्रिकेट में क्रिकेटिंग लीजेंड और उनकी विदाई से जुड़ा एक अजीबोगरीब इतिहास रहा है. लक्ष्मण, द्रविड़, सहवाग ये कुछ ऐसे लीजेंड हैं जिन्होंने भारतीय क्रिकेट को एक नया मुकाम तो दिया लेकिन इन्हें बोर्ड से एक सम्मानजनक विदाई तक नसीब नहीं हुई. धोनी को टेस्ट में विदाई का मौका नहीं मिला उन्होंने अचनाक संन्यास लिया। क्या चयनकर्ताओं के उन्हें न चुनने के फैसले को उनकी विदाई मान ली जाए, और अगर हां तो उनकी जगह विकल्प की तलाश में गलती क्या है। हम क्रिकेट प्रशंसक के तौर पर कभी नहीं चाहेंगे कि उनकी विदाई इस तरह हो। भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाई देने वाले इस लीजेंड की एक शानदार विदाई तो बनती है। ऑस्ट्रेलियन माइंड सेट के साथ क्रिकेट खेलने वाले माही मैन-मैनजेमेंट के माहिर हैं। हम सभी जानते हैं कि राइट टाइम पर वो राइट फैसले लेने की अकूत क्षमता रखते हैं। उन्हें टीम से ड्रॉप किए जाने के फैसले पर एक बार लगता है काश धोनी कुछ फैसले पहले ले लिए होते।
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